की-होल बायसपास सर्जरी से अब नहीं कटेगी सीने की हड्डी -डॉ. राजेंद्र वसैया
नीमच (निप्र)।देश के ख्यातनाम कार्डियक सर्जन डॉ. राजेंद्र वसैया (अहमदाबाद ) 27 अगस्त शाम 7.30 बजे लायंस क्लब के शपथ ग्रहण समारोह में मुख्य वक्ता के रुप में कार्यक्रम में शिकरत करेंगे । विशेष चर्चा के दौरान कार्डियक सर्जन वैसया ने बताया वे दूरबीन से पथरी सहित अन्य ऑपरेशन की तरह ही हृदय रोग संबंधी सर्जरी 27 सालों से करते आ रहे है।इसे की-होल बायपास सर्जरी कहा जाता है।दूरबीन से पथरी सहित अन्य ऑपरेशन की तरह ही हृदय रोग संबंधी बायपास भी हो रहे हैं। इसे की-होल बायपास सर्जरी कहा जाता है।इसके कई फायदे हैं, लेकिन जागरूकता के अभाव में लोगों तक पूरी जानकारी नहीं है।
अहमदाबाद के विभिन्न हॉस्पिटल से जुड़े हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेन्द्र वसैया ने बताया आर्टरी का दूरबीन से ऑपरेशन करने वाले देश में कुछ ही डॉक्टर हैं,लेकिन मल्टी आर्टरी का दूरबीन से ऑपरेशन करने वाले सर्जन पूरे देश में महज 5 से 6 सर्जन ही है। की-होल सर्जरी तीन से अधिक नली में ब्लॉकेज होने के बावजूद हो सकती है। पूरे देश में इस तरह की सर्जनी महज 6 से 8 सर्जन करते है। उल्लेखनीय है यह सर्जरी सबसे पहले डॉ. राजेंद्र वसैया द्वारा ही की गई थी। अब तक अहमदाबाद में 600 मरीजों के सर्जरी कर चुके हैं। आमतौर पर बायपास सर्जरी में 7से 8 घंटे का समय लगता है, लेकिन मरीज की रिकवरी में बहुत ही कम समय लगता है। दूरबीन से सर्जरी में आईसीयू से ही महज 2 दिनों में मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है। इस सर्जरी में साढे पांच लाख रुपए तक आता है। की-होल सर्जरी में लम्बा चीरा न लगाया जाता न ही सीने की हड्डी काटी जाती है, केवल पसलियों के यहां छोटा सा छेद कर दूरबीन के जरिए ऑपरेशन किया जाता है। दो दिन में मरीज को छुट्टी दे दी जाती है। वहीं 78 प्रतिशत मरीजों को एक यूनिट भी रक्त नहीं चढ़ाना पड़ता है। सामान्य बायपास में पैर में से नस लेनी पड़ती है,जबकि की-होल सर्जरी में ऐसा नहीं होता। सामान्य बायपास सर्जरी में आईसीयू में 2 दिन रहने के बाद दो माह तक आराम करना होता है।दूरबीन से पथरी सहित अन्य ऑपरेशन की तरह ही हृदय रोग संबंधी बायपास भी हो रहे हैं। इसे की-होल बायपास सर्जरी कहा जाता है।दूरबीन से पथरी सहित अन्य ऑपरेशन की तरह ही हृदय रोग संबंधी बायपास भी हो रहे हैं। इसे की-होल बायपास सर्जरी कहा जाता है।
इसके कई फायदे हैं-
नार्मल सर्जरी में छाती की हड्डी कटती है उसको जोडने में 6 से 12 माह लगते है और मरीजों को काफी परेशानी और दर्द झेलना पड़ता है। इसके साथ ऑपरेशन के दौरान ब्लड नुकसान भी कम होता है। मरीजों को ऑपरेशन के ब्रेन और किडनी की समस्या जीरों हो जाती है।