नीमच (निप्र)। संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। यदि संस्कार न हों तो हमारी सामाजिक जिम्मेदारियां और सामाजिक भागीदारी शून्य होगी। संस्कारों की पहली पाठशाला घर से शुरू होती है। हम जो घर से सीखते हैं, वही बाहर करते हैं। इसके बाद स्कूल में संस्कारों का समायोजन होता है। इसके अलावा संस्कारों में एक अहम संस्कार है, जिसे परोपकार कहा जाता है। परोपकार के जरिए ही समाज में हम एक दूसरे की भावनाओं को समझ पाते हैं। इसी के जरिए हम एक दूसरे की मदद के लिए प्रेरित होते हैं। यदि यह संस्कार न हो तो हम समाज में कोई स्थान प्राप्त नहीं कर सकते। लिहाजा, संस्कारों की कड़ी में हमें परोपकार के बारे में पता होना चाहिए और इसका अनुपालन भी सुनिश्चित करना चाहिए। तभी हम समाज में विशिष्ट स्थान बना पाने में कामयाब हो सकते हैं। यह बात राष्ट्र सेविका समिति विभाग सेवा प्रमुख लक्ष्मी प्रेमाणी ने कही।
अवसर था ग्राम सावन के सरस्वती शिशु मंदिर में कुटुंब प्रबोधन एवं मातृ सम्मेलन का । जिसमें मुख्य वक्ता सुश्री प्रेमाणी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा बच्चों में शिक्षा के साथ ही संस्कारों का भी बीजारोपण होना चाहिए। संस्कारों के बिना शिक्षा अधूरी है। आज के इस भौतिक युग में संस्कार शाला का संचालन होना अत्यंत आवश्यक है। परिवार किसी भी व्यक्ति का पहला संस्कार केंद्र है व्यक्ति को चरित्र सोच और व्यवहार परिवार में मिलने वाले संस्कारों से ही निर्मित होता है बच्चों की प्रथम गुरु माताये ही होती है ऐसे में कुटुंब प्रबोधन परिवार जागरण और सशक्तिकरण अत्यंत आवश्यक की यह एक सामाजिक आंदोलन है जो भारतीय संस्कृति की मूल भावना है । डिजिटलाइजेशन के इस युग में जेनरेशन गैप को कम करने के लिए के ब्रिज निर्माण कर परंपरा और आधुनिकता में संतुलन स्थापित करना है।
आयोजन के दौरान अतिथि के रुप में राष्ट्र सेविका समिति सह सेवा प्रमुख ज्योति खंडेलवाल, राष्ट्रीय सेवा समिति नगर कार्यवाहिका ज्योति नरेला, अतिथि:-श्रीमती ज्योति नरेला, विशेष अतिथि राजेंद्र भट्ट (जिला प्रमुख नीमच) थे। कार्यक्रम की अध्यक्ष श्रीमती उर्मिला शर्मा (अध्यक्षा महिला मंडल सावन) ने की एवं संचालननंदकिशोर सोनी ने किया।.आभार महिला मंडल अध्यक्ष श्रीमती उर्मिला शर्मा ने व्यक्त किया। इस मौके पर कार्यक्रम में आई सभी माताओ को उपहार भैट किए गए अंत में कल्याण मंत्र के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।