बेखौफ मिलावटखोर, जुर्माना वसूली पर भी नहीं जोर

बेखौफ मिलावटखोर, जुर्माना वसूली पर भी नहीं जोर


- खाद्य एवं औषधि प्रशासन और राजस्व विभाग की अनदेखी से मिलावटखोर कर रहे मनमानी
भोपाल । मप्र में मिलावटखोरी के खिलाफ कार्रवाई महज रस्म अदायगी तक रह गई है। इसका असर न तो मिलावटखोरों पर हो रहा है और न ही व्यवस्था में कोई सुधार नजर आ रहा है। जांच के दौरान जो नमूने लिए जाते हैं, उनकी रिपोर्ट भी महीनों अटकी रहती है। साथ ही जो जुर्माना किया जाता है, प्रशासन उसे भी नहीं वसूल पाता है। हालत यह है कि प्रदेश में ही अब तक लगाए गए जुर्माने की कुल राशि में से मात्र 50 प्रतिशत की भी वसूली नहीं पाई है। जुर्मानों की वसूली का मामला खाद्य एवं औषधि प्रशासन और राजस्व विभाग के बीच झूल रहा है। अपराध का दंड नहीं मिल पाने से मिलावटखोरों की मनमानी नहीं थम रही है।
 मिलावट से मुक्ति के लिए प्रदेश भर में पिछले तीन साल में चले अभियान में 5,601 केस समक्ष न्यायालयों ने निराकृत किए। इनमें मिलावटखोरों पर 25.22 करोड़ रुपये का अर्थदंड लगाया, लेकिन अफसर 7.91 अर्थदंड की वसूली ही कर पाए। ऐसे में मिलावटखोरी के लिए चला अभियान रस्म अदायगी बनकर रह गया। नवंबर 2020 से दिसंबर 2023 तक चले अभियान के दौरान 45 हजार 808 नमूने लेकर जांच के लिए राज्यस्तरीय लैब भेजे गए। इनमें से सात हजार 987 सैंपल की जांच रिपोर्ट फेल आई। इसके बाद प्रकरण समक्ष न्यायालय को भेजे गए। सक्षम न्यायालय ने सुनवाई कर मिलावटखोरों पर अर्थदंड लगा दिया, लेकिन उसकी वसूली तीन साल बाद भी अफसर नहीं कर पाए।
रासुका का भी डर नहीं
खाद्य और औषधि प्रशासन की टीम ने जमकर सैंपलिंग और मिलावटखोरों पर धड़ाधड़ केस दर्ज किए। इससे हड़कंप भी मचा, लेकिन इस शोर के बीच अफसर खुद मिलावटखोरों को बचा ले जाते है। यहां तो कार्रवाई में भी मिलावट है। सैंपल पर सैंपल फेल फिर भी मिलावटखोर पर कार्रवाई नहीं होती, यह सवाल जिम्मेदार अफसरों को चुभता तो है, लेकिन सही जवाब देने से वे खुद बचते हैं। खास बात यह है, जिन मिलावटखोरों पर प्रदेश भर में करोड़ों का जुर्माना हुआ है, उसमें से वसूली न के बराबर है। जबकि जुर्माना जमा नहीं करने की स्थिति में तहसीलदार के माध्यम से आरआरसी के तहत संपत्ति कुर्क करने के अधिकार नहीं हैं।