लगता है शा.उ.मा.वि. झकनावदा के संकुल प्राचार्य राजनीतिक दबाव में काम कर रहे हैं
पेटलावद /झकनावदा--आज पूरा देश 77 वें स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ मना रहा है। देश में सभी जगह सुबह स्कूली बच्चों की प्रभात फेरी निकाली जा रही है। उसके बाद बच्चों द्वारा रंगारंग प्रस्तुतियां भक्ति गीतों के साथ नृत्य करते हुए दी जा रही है। इसमें सभी जनप्रतिनिधियों गांव के गणमान्य नागरिकों, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारों को भी निमंत्रण दिया जा रहा है। भारत देश के सभी लोग मिलकर स्वतंत्रता दिवस को बड़े हर्ष उल्लास के साथ मना रहे हैं। इसी क्रम में आज जनपद पंचायत पेटलावद के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत झकनावदा की शा उ मा वि झकनावदा मैं भी 77वा स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। जिसमें सभी स्कूली छात्र-छात्राओं ने देशभक्ति गीतों के साथ रंगारंग प्रस्तुतियां दिया, समूह नृत्य, भाषण, राष्ट्रगीत के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। जिसमें जनप्रतिनिधियों, गांव के गणमान्यं नागरिक को, और तीन पत्रकारों (रमेश सोलंकी, चंद्रशेखर राठौर, वीरेंद्र गोस्वामी) को छोड़कर कुछ चंद पत्रकारों को,भारत देश के 77वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर निमंत्रण दिया गया। यह एक बड़ा सवाल है। कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारों को स्वतंत्रता दिवस जैसे अमूल्य राष्ट्रीय त्योहार के दिन कैसे भुला जा सकता है। जबकि पत्रकार ही एक ऐसा व्यक्ति है। जो शिक्षा के विकास में, देश के विकास में, सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में, स्कूली बच्चों के विकास में क्षेत्र के विकास में, निस्वार्थ भावना से अपना मूल्य समय देता है। सवाल तो यह भी उठता है। कि संकुल प्राचार्य रमेश चंद्र चौरसिया इन तीनों पत्रकारों को कैसे भूल सकते हैं। क्योंकि हर स्वतंत्रता दिवस हो। गणतंत्र दिवस हो, को इन तीनों पत्रकारों को निमंत्रण पत्र संस्था की ओर से जाता है। और इस बार ऐसा क्या हो गया कि इन तीनों को इस अहम मौके पर नहीं बुलाया गया।ऐसा लगता है जैसे संकुल प्राचार्य रमेश चंद चौरसिया किसी दबाव में आकर काम कर रहे हैं। या वह जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं। यह समझ से परे हैं।
*संकुल प्राचार्य रमेश चंद चौरसिया कहीं ना कहीं राजनीतिक दबाव में ही काम कर रहे हैं*
ऐसा इसलिए हम कह रहे हैं क्योंकि हमारे पास सिद्ध करने के लिए इन के 3 पहलू हैं, आइए हम इन पहलुओं को समझते हैं। पहला पहलू हमारे पास पूर्व में हुए ग्राम पंचायत झकनावदा के सरपंच चुनाव को लेकर है। जिसमें इनको चुनाव का सेक्टर प्रभारी बनाया गया था। इसमें भी उनके चेहरे पर राजनीतिक दबाव साफ तौर पर देखा जा रहा था। क्योंकि उस समय भी उनके कार्य शैली में उदासीनता साफ तौर पर दिखाई दे रही थी। इनके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था मानो यह किसी के दबाव में काम कर रहे हो। और उस ग्राम पंचायत के चुनाव में बहुत सारी अनियमितता भी पाई गई थी। दूसरा पहलू हमारे पास जब ग्राम पंचायत झकनावदा के द्वारा शासकीय विज्ञान भवन को तोड़कर 7 नवीन अटल कंपलेक्स बनाए गए थे। सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि।जिसमें भी इन्होंने दबाव में आकर अपनी रजामंदी दी थी।
और तीसरा पहलू आज यह सामने आया कि देश के इतने अहम कार्यक्रम में पत्रकारों की अनदेखी करना। कहां तक सही है। सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि यह सारा खेल इनका नहीं है। इसमें भी एक राजनीतिक गुरु की भूमिका साफ तौर पर दिखाई दे रही है। और वह राजनीतिक गुरु जैसा-जैसा कहता है, कठपुतली की तरह संकुल प्राचार्य करते जाते हैं। कार्यक्रम में किसे बुलाना है किसे नहीं बुलाना है, सारी बातें वही तय करता है। किसको कौन माला पहनाएगा। कार्यक्रम का मुख्य अतिथि कौन होगा?संचालन कर्ता कौन होगा? किस नेता को कहां पर बिठाना, है। यह सारी बातें वह राजनीतिक गुरु ही तय करता है। यह तो सिर्फ हाथों की कठपुतली बनकर ही कार्य करते हैं। वह गुरु कम एवं राजनीति गुरु ज्यादा है। वह पढ़ाना-- लिखाना कम और स्वार्थी राजनीति करना ज्यादा पसंद करता है। अगर उसका जोर चले तो नौकरी छोड़कर वह राजनीतिक गुरु पेटलावद तहसील से विधायक का चुनाव भी लड़ ले।खैर इससे हमको क्या लेना देना। हमारे जो पत्रकारों की पीड़ा है। वही आज बया की है।